अहंकार पर प्रेम की जीत का पर्व है होली: आचार्य
सुपौल/करजाईन: गौरीश मिश्रा
अहंकार पर प्रेम की जीत का पर्व है होली: आचार्य
बिहार/सुपौल: रंग और गुलाल का महापर्व होली पूरे देश में प्रेम, उल्लास एवं भाईचारे के साथ मनाया जाता है। होली रंगों का त्योहार है, जिस प्रकार प्रकृति रंगों से भरी हुई है। उसी प्रकार हमारी भावनाएं भी विभिन्न रंगों से जुड़ी हुई है।
साथ ही होली अहंकार पर प्रेम, समर्पण एवं भक्ति की जीत का पर्व भी है। होली पर्व की महात्म्य बताते हुए आचार्य पंडित धर्मेंद्रनाथ मिश्र ने बताया कि इस बार पवित्र होली पर्व 28 मार्च यानि रविवार को मनाया जाएगा। होली पर्व के रहस्य पर प्रकाश डालते हुए आचार्य ने कहा कि पुराणों के अनुसार राजा हिरण्य कश्यप की यह इच्छा थी कि उनका पुत्र प्रहलाद भगवान नारायण की पूजा छोड़कर उनकी पूजा करें।
ऐसा नहीं करने से राजा हिरण्यकश्यप अपने पुत्र पर क्रोधित होकर अपनी बहन होलिका को आज्ञा देते हुए कहा कि बहन तुम अपनी मायावी शक्ति का प्रयोग कर प्रह्लाद को अपने गोदी में बैठा कर अग्नि प्रज्वलित कर उन्हें जलाकर भस्म कर दो। भाई की आज्ञा मान बहन होलिका ने ऐसा ही किया। लेकिन भगवान नारायण की कृपा से होलिका जलकर भष्म हो गई और भक्त प्रहलाद का बाल भी बांका नहीं हुआ।
उसी दिन से होलिका दहन कर रंग-गुलाल लगाकर होली पर्व खेलने की परंपरा है। आचार्य ने बताया कि होली में प्रयोग किए जाने वाले रंग किसी न किसी भावना से जुडी है। लाल रंग क्रोध से, हरा रंग जलन से, पीला रंग उत्साह और प्रसन्नता से, गुलाबी रंग प्रेम से, नीला रंग विशालता से, सफेद रंग शांति से, गेरुवा रंग त्याग एवं बैंगनी रंग ज्ञान से जुड़ा हुआ है। होली की तरह मानव जीवन भी सभी रंगों से हरा-भरा होनी चाहिए।
प्रदोषकाल में करें होलिका दहन
28 मार्च यानि रविवार को फाल्गुन पूर्णिमा एवं होलिका दहन होगा। होलिका दाह का शुभ समय 28 मार्च को देर शाम 6 बजकर 6 मिनट से 7 बजकर 42 मिनट तक है।
इस दिन कुल-देवताओं को सिंदूरा आदि अर्पण के साथ-साथ चैतन्य जयंती भी मनाया जाता है। उन्होंने बताया कि होलीका दहन प्रदोष काल में किया जाता है। मान्यता है कि प्रतिपदा चतुर्दशी के दिन और भद्रा में होलिका दहन सर्वथा वर्जित है।
ऐसे में भद्रा को त्याग कर ही होलिका दहन किया जाता है। होलिका दहन के समय ऊँ होलिकायै नमः मंत्र के साथ विधिवत पूजन का विधान है।