महाशिवरात्रि व्रत व पूजन से होती है मनोवांछित फलों की प्राप्ति : आचार्य
सुपौल/करजाईन: गौरीश मिश्रा
महाशिवरात्रि व्रत व पूजन से होती है मनोवांछित फलों की प्राप्ति : आचार्य
बिहार सुपौल: माघ मास की कृष्ण पक्ष चतुर्दशी की महानिशा में आदिदेव महादेव कोटि सूर्य के समान दीप्ति संपन्न हो शिवलिंग के रूप में अवतरित हुए थे। इसलिए शिवरात्रि व्रत में उसी महानिशा व्यापिनी चतुर्दशी का ग्रहण करना चाहिए।
शिवरात्रि व्रत का महात्म्य समझाते हुए आचार्य पंडित धर्मेंद्रनाथ मिश्र ने कहा कि शिवरात्रि के अनुष्ठान में शास्त्रों का गूढ़ उद्देश्य निहित है। माघ मास की कृष्ण चतुर्दशी बहुधा फाल्गुन मास में आमवस्या मास की दृष्टि से माघ कहा गया है। जहां कृष्ण पक्ष में मास का आरंभ और पूर्णिमा पर उसकी समाप्ति होती है। उसी के अनुसार फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी में यह महा शिवरात्रि का व्रत होता है।
इस बार महाशिवरात्रि का पर्व 11 मार्च यानि गुरुवार को है। शिव रात्रि में धर्म एवं नियम पूर्वक शिव पूजन एवं उपवास करने से भक्तों को मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है। आचार्य ने बताया कि इसी दिन भगवान शिव ने संरक्षण और विनाश का सृजन किया था। इसी दिन भगवान शिव संग माता पार्वती का विवाह संपन्न हुआ था। साथ ही उसी दिन रावणेश्वर, वैद्यनाथ संग सिंहेश्वर नाथ की स्थापना हुई थी।
इस विराट भारतवर्ष में बहुतों लोग यथाविधि पूजा पाठ करते हुए भी शिवरात्रि का उपवास करते हैं।
जिनकी उपवास में भी रूचि नहीं होती वे कम से कम रात्रि जागरण करके ही इस व्रत के पुण्य को प्राप्त कर सकते हैं। आचार्य ने कहा कि शिव पूजा एवं शिवरात्रि व्रत में थोड़ा अंतर है। जीवन में जो वर्णीय है, बार-बार अनुष्ठान के माध्यम से मन, कर्म व वचन से जो प्राप्त करने योग्य है वही व्रत है। इसी कारण प्रत्येक व्रत के साथ कोई-न-कोई कथा या आख्यान जुड़ा रहता है। कैलाश पर्वत पर प्रवास के दौरान पार्वती ने शंकर भगवान से पूछा , भगवन यह जानने की प्रबल इच्छा होती है कि किस कर्म, किस व्रत या किस प्रकार की तपस्या से आप प्रसन्न होते हैं।
इसके जवाब में भगवान शंकर ने कहा कि फाल्गुन कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को आश्रय कर जिस अंधकारमयी रजनी का उदय होता है।
उसी को शिवरात्रि कहते हैं। इस दिन उपवास करने से मैं सबसे अधिक प्रसन्न होता हूँ। साथ ही शिवरात्रि व्रत रात्रि में ही क्यों होता है इसका कारण स्पष्ट करते हुए आचार्य ने कहा कि समाधियोग में परमात्मा से आत्मसमाधान की साधना ही शिव साधना है। इसलिए रात्रि ही इसका मुख्य काल व अनुकूल समय है। प्रकृति की स्वाभाविक प्रेरणा से उस समय प्रेमसाधना, आत्मनिवेदन, एकात्मानुभूति सहज ही सुन्दर हो उठती है।
शिवरात्रि की पूजा विधि
इस दिन पूजा विधि के बारे में बताते हुए आचार्य ने कहा कि रात्रि के प्रथम पहर में दुग्ध से शिव की ईशान मूर्ति को, दूसरे पहर में दही से अघोर मूर्ति को, तृतीय पहर में घी से वामदेव मूर्ति को एवं चतुर्थ पहर में मधु से सधोजात मूर्ति को स्नान कराकर उनका पूजन करना चाहिए। उन्होंने बताया कि शिवरात्रि व्रत में उपवास ही प्रधान अंग है।
ऐसे करें पूजा-अर्चना
11 मार्च यानि गुरुवार को ब्रह्म मुहूर्त से पूरी रात्रि शिव पूजन, अभिषेक, पूजा-अर्चना आदि करें। अगले दिन यानी शुक्रवार को शिवलिंग पर जलढरी कर शिव दर्शन के उपरांत पार्वन करें।
Jai mahakal 🙏🏻