समाज में व्याप्त महिलाओं के प्रति सोच को बदलने की है जरूरत: दीपिका झा
डेस्क
समाज में व्याप्त महिलाओं के प्रति सोच को बदलने की है जरूरत: दीपिका झा
बिहार/सुपौल: सदियों से नारी को एक वस्तु मात्र समझा जाने वाला यह समाज आज भी उसी सोच को अपने जहन में बैठाए हुए है। जिससे अब बाहर निकलने की सख्त आवश्यकता है। समाज में व्याप्त यह धारणा कि नारी तो बस पर्दे की चीज है, वह समाज में कुछ कर नहीं सकती, वह अपने लिए जी नहीं सकती, ना अपने पसंद की कपड़े पहन सकती और ना ही अपने पसंद का काम कर सकती, इस तरह के सोच से आज भी समाज भरा पड़ा है।
21वीं सदी के इस दौर में कहा जाता है कि अगर समाज को आगे बढ़ना है देश को आगे बढ़ना है तो महिला और पुरुष दोनों की हिस्सेदारी बराबर होनी चाहिए परंतु सदियों पुरानी सोच वाले इस समाज में यह बातें एक कुठाराघात की तरह लगता है। जो महिलाओं को उनका हक देने की बात तो करता है लेकिन देता नहीं है।
स्त्रियों की भूमिका की अगर बात करें तो वह अपने जीवन में पहले बेटी फिर बहू फिर मां फिर सास फिर दादी औऱ न जाने कितने पायदान पर अपना योगदान देती है और इस समाज में एक अच्छे वातावरण को तैयार करने में अलग-अलग तरह से अपनी भूमिका अदा करती है। स्त्रियां समाज से लेकर देश-विदेश के हर क्षेत्र में अपने हुनर और काबिलियत के बदौलत पुरुषों के बराबर काम करती आई है। अगर इतिहास की बात करूं तो आजादी के समय के पूर्व से ही महिलाओं ने अपनी उपस्थिति दर्ज करा चुकी है।
जिसमें रजिया सुल्तान, गोंड रानी दुर्गावती, रानी नूरजहां, जीजाबाई, रानी लक्ष्मीबाई, विजया लक्ष्मी पंडित, कस्तूरबा गांधी और न जाने कितनी महिलाओं ने इतिहास में अपना नाम दर्ज करा लिया। और अगर वर्तमान की बात करूं तो महिलाएं प्रत्येक जगत में अपना योगदान दे रही है वह चाहे खेल की दुनिया हो, फिल्मी जगत हो, राजनीति हो, विज्ञान की दुनिया हो, सामाजिक दुनिया हो हर क्षेत्र में हर जगह पर आज महिलाएं अपना अस्तित्व बना रही है। जिसका उदाहरण श्रीमती इंदिरा गांधी, श्री प्रतिभा देवी सिंह पाटिल, सुचेता कृपलानी, कल्पना चावला, अरुणिमा सिन्हा, किरण बेदी, ममता बनर्जी, उमा भारती, सुमित्रा महाजन, मीरा कुमार, बछेंद्री पाल, फातिमा बीवी, मेघा पाटकर आदि है।
परंतु इन सभी बातों के पड़े समाज का एक और चेहरा आज भी रह- रह कर आघात करती है। नारी उत्थान, नारी शक्ति, नारी सशक्तिकरण इस फलसफे को बड़े-बड़े मंच से भी चिल्ला- चिल्ला कर कहा जाता परंतु धरातल पर आज भी फीका नजर आता है। आज भी समाज में अगर महिला के साथ अत्याचार होता है, मारपीट होता है या वह अपने हक के लिए लड़ती है तो आज भी उसे ताने सुनने पड़ते हैं। उसे बुरा भला कहा जाता है। अगर वह अपने ऊपर हो रहे अन्याय का न्याय मांगने कानून की शरण में जाती है तो वहां भी पुलिस उससे ना जाने कैसे- कैसे सवाल करते हैं और उनके मन को तोड़ते या तोड़ने का प्रयास करते हैं, ताकि फिर से वह विपरीत सोच के साथ जीने को मजबूर हो जाए।
स्त्री के छोटे कपड़े पर टिप्पणी नहीं करना चाहती पर अगर पुरुष अपना पूरा बदन ढक सकता है तो स्त्रियों को भी सोचना चाहिए।वाकई में अगर नारी सशक्तिकरण जैसी बात को समाज मे अमल में लाना है तो नारी को हर जगह समान अधिकार मिलना चाहिए वो चाहे लोकसभा हो या विधानसभा, जिला स्तर पर हो या सामाजिक स्तर पर हो हर जगह महिलाओं के समस्या के निदान का उचित प्रबंध होना चाहिए।ताकि अगर कहीं भी महिलाओं के साथ गलत होता है तो त्वरित सहायता उसे मिले और जांचोपरांत दोषी को जल्द से जल्द सजा मिले। इस सारी व्यवस्था के लिए सम्पूर्ण नारी शक्ति को आगे आना होगा।तब जाकर कहीं समाज मे बदलाव संभव हो पायेगा।