आखिरकार मजदूर कब तक रहेंगे मजबूर !

कृतिका कृति की रिपोर्ट

आखिरकार मजदूर कब तक रहेंगे मजबूर !

बिहार: आज दुनिया कोरोना की दूसरी लहर से जूझ रहा है। चारों तरफ स्थिति भयावह रूप ले चुकी है। लोग त्राहिमाम-त्राहिमाम की चीत्कार कर रहे हैं। इसी बीच आज 1 मई, मजदूर दिवस की तिथि पर याद आ रहे हैं फिर से वो बीते साल के जर्जर हालात।

बेशक, आप को भी बखूबी याद होगा, लॉकडाउन में मजदूरों का पलायन, उनकी बेबसी, भुखमरी और लाचारी ।
आंकड़े बताते हैं कि कोरोना की पहली लहर ने देश के मजदूरों पर घातक असर डाला। कोरोना की पहली लहर में लॉकडाउन के दौरान बिहार और बिहार के मजदूरों ने जिस भयावह हालात का सामना किया है। वह कतई काफी खौफनाक था। आज भी उस भयावह दृश्य की कल्पना रोंगटे खड़े कर देती है। बिहार में मजदूरों के पलायन के उस स्थिति ने ना सिर्फ राज्य व राष्ट्र अपितु संपूर्ण विश्व को झकझोर दिया था।

ऐसे में मजदूरों पर कोरोना की पहली लहर के असर को देखने के बाद वर्तमान समय में पुनः देश के मजदूर विशेष तौर पर बिहारी मजदूर एक गंभीर विषय होना चाहिए। किंतु वर्तमान परिदृश्य कुछ यूं है कि किसी खास समूह या वर्ग के समस्याओं के बारे में सोचना काफी कठिन प्रतीत होता है। चूँकि आज लगभग हर घर, हर वर्ग कोरोना के प्रकोप से जूझ रहा है।

कोरोना की दूसरी लहर और भी अधिक कष्टदायक प्रतीत हो रही है। कोरोना की पहली लहर में फेल शासन और सिस्टम दूसरी लहर में भी मौन दिख रहे हैं।
ऐसे में सवाल उठता है कि हालात कब तक ऐसे रहेंगे ???
आखिरकार मजदूर कब तक रहेंगे मजबूर ?

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