जगत के कल्याण के लिए हुई रुद्राक्ष की उत्पत्ति : आचार्य

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सुपौल/करजाईन: गौरीश मिश्रा

जगत के कल्याण के लिए हुई रुद्राक्ष की उत्पत्ति : आचार्य

बिहार/सुपौल: सावन की दूसरी सोमवारी पर भक्त भगवान शिव की आराधना में लीन है। श्रावण मास भगवान भोलेनाथ को अत्यंत प्रिय है। ऐसे सावन मास में भोलेनाथ के प्रिय रुद्राक्ष की उत्पत्ति एवं इसके महात्म्य का रहस्य बताते हुए आचार्य पंडित धर्मेंद्रनाथ मिश्र ने कहा कि रुद्राक्ष के बारे में स्कन्दकुमार के पूछने पर भगवान शंकर ने बताया कि प्राचीनकाल में सभी लोगों से अपराजेय त्रिपुर नामक दैत्य था। उन्होंने ब्रह्मा, विष्णु आदि सभी देवताओं को जीत लिया था।

इसके बाद सभी देवताओं के कल्याण के लिए उन्होंने दिव्य, सुन्दर एवं शक्तिशाली अघोर नामक अस्त्र की कल्पना की। इस अघोर अस्त्र की चिंतन करते-करते हजारों वर्ष तक उनकी आंखें खुली रही, जिससे जल की बूंदें गिरने लगी। उन अश्रु बूंदों से रुद्राक्ष के बड़े-बड़े वृक्ष उत्पन्न हो गए। उनकी आज्ञा से जगत के कल्याण के लिए 38 प्रकार के रुद्राक्ष हुए। उनके सूर्य नेत्र अर्थात दाहिने आंख से कपिलवर्ण के रुद्राक्ष हुए, जो 12 प्रकार के हैं। चंद्र नेत्र अर्थात बाएं आँख से श्वेत वर्ण के रुद्राक्ष उत्पन्न हुए, जो 16 प्रकार के हैं। साथ ही अग्निनेत्र अर्थात तीसरी आंख से कृष्ण वर्ण के रुद्राक्ष हुए, जो 10 प्रकार के हुए।

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रुद्राक्ष की उत्पत्ति के बाद उसके महात्म्य बताते हुए आचार्य धर्मेंद्रनाथ ने कहा कि एक मुखी रुद्राक्ष साक्षात् शिव स्वरूप ही है। दो मुखी रुद्राक्ष देवी-देवताओं दोनों के स्वरूप हैं, जो दो प्रकार के पापों का शमन करता हैं। तीन मुख वाला रुद्राक्ष साक्षात अग्नि स्वरूप है, जो स्त्री वध जैसे पापों को क्षण भर में भष्म कर डालता है। चार मुख वाला रुद्राक्ष साक्षात ब्रह्म स्वरूप ही है। वह नर वध जनित पापों को दूर करता है। पंचमुखी रुद्राक्ष साक्षात कालाग्नि नाम वाले रूद्र के स्वरूप है, जिसके धारण करने से मनुष्य अभक्ष्य वस्तुओं के भक्षण करने से तथा दोषित नारी के संग लगे पापों से मुक्त हो जाता है।

छह मुख वाला रुद्राक्ष कार्तिकेय का स्वरूप है। इसे दाहिने हाथ में धारण करना चाहिए। इसे धारण करने से ब्रह्म हत्या जैसे पापों से मुक्ति मिलती है। सप्तमुखी रुद्राक्ष अनंग नाम वाले कामदेव का रूप है। इससे स्वर्ण चोरी आदि पापों से मुक्त होता है। आठ मुख वाला रुद्राक्ष साक्षात विनायक देव है। इसे धारण करने से मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है। नौ मुख वाला रुद्राक्ष भैरव का स्वरूप है। इसे बांयी भुजा पर धारण करने से मनुष्य बलवान होता है। दस मुख वाला रुद्राक्ष जनार्दन का स्वरूप है। इसके धारण मात्र से ही ग्रह, भूत, पिशाच, बेताल, ब्रह्म राक्षसों तथा पन्नगों से उत्पन्न होने वाले विघ्न स्वतः ख़त्म हो जाते हैं। एकादशमुखी रुद्राक्ष साक्षत एकादश रूद्र हैं। इसे शिखा में धारण करने से अश्वमेघ यज्ञ, वाजपेय यज्ञ तथा लाखों गोदान करने का फल मिलता है।

द्वादश अर्थात बारह मुख वाले रुद्राक्ष को धारण करने से द्वादश आदित्य प्रसन्न होते हैं। इसे धारण से किसी भी प्रकार के हिंसा का भय नहीं होता है। तेरह मुख वाला रुद्राक्ष साक्षात् कार्तिके ही है। इसके धारण से समस्त सिद्धि की प्राप्ति होती है। साथ ही अगर किसी को चौदह मुख वाले रुद्राक्ष की प्राप्ति हो तो उसे मस्तक पर धारण करें। इससे उस धारण करने वाले व्यक्ति का शरीर साक्षात् शिव स्वरूप है।

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