देवर्षि नारद जी की भक्तिमहारानी से भेंट: आचार्य धर्मेंद्रनाथ मिश्र

डेस्क

देवर्षि नारद जी की भक्तिमहारानी से भेंट: आचार्य धर्मेंद्रनाथ मिश्र

बिहार/सुपौल: छातापुर प्रखंड अंतर्गत राजेश्वरी ग्राम वार्ड नं 5 में चल रहे सप्तदिवसीय श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान यज्ञ के द्वितीय दिवस की कथा में प्रख्यात प्रवक्ता मैथिल पंडित आचार्य धर्मेंद्रनाथ मिश्र ने भक्ति महारानी और नारद जी के बीच में जो वार्ता हुई उसी वार्ता पर चर्चा किया ।उन्होंने कहा कि भक्ति महारानी के 2 पुत्र ज्ञान और वैराग्य यमुना के तट पर अचेता अवस्था में पड़े हुए थे।

कारण कलयुग के दावानल का प्रकोप इतना बढ़ गया था, कलि दोष के प्रकोप से अत्याचार के प्रकोप से कलयुग के दोष से भक्ति महारानी के पुत्र ज्ञान और वैराग्य जर्जर अवस्था में अचेत अवस्था में सो गए। जबकि भक्ति महारानी युवती दिखाई पड़ रही थी और उनके पुत्र ज्ञान और वैराग्य अचेत अवस्था में चले गए थे। जीर्ण हो गए थे ।उसी समय महर्षि नारद जी आकर भक्ति महारानी के चिंता का और दुःख का कारण पूछा ।तब देवर्षि नारद ने भक्ति महारानी पर कृपा करके उनके पुत्र ज्ञान और वैराग्य को चेतना अवस्था में लाने का जो साधन था वह साधन भी धर्म और कर्म ही था।नारद जी ने सभी साधनों को बताते हुए भक्ति महारानी के पुत्र ज्ञान और वैराग्य को स्वस्थ होने के उद्देश्य से वेद पाठ, गीता पाठ, उपनिषद का पाठ इत्यादि आख्यान श्रवण कराए। उसके श्रवन से कुछ चेतना तो आया लेकिन पूर्ण कल्याण नहीं हो पाया। तत्पश्चात संतो के शरणागत होकर के श्रीमद् भागवत कथा अमृत कथा का पान जब कराया गया तभी ज्ञान और वैराग्य को पूर्ण चेतना अवस्था प्राप्त हुआ और भक्ति महारानी भी नृत्य करने लगी। आचार्य धर्मेन्द्र ने बताया कि, श्री सुकदेव जी ने कलयुग में जीवो के काल रूपी सर्प के मुख का ग्रास होने के त्रास का आत्यंतिक नाश करने के लिए श्रीमद् भागवत शास्त्र का प्रवचन किया है। मन की शुद्धि के लिए इससे बढ़कर कोई दूसरा साधन नहीं है। जब मनुष्य के जन्म जन्मांतर का पुण्य उदय होता है तभी उसे इस भागवत शास्त्र की प्राप्ति होती है ।जब सुखदेव जी राजा परीक्षित को यह कथा सुनाने के लिए सभा में विराजमान हुए तब देवता लोग उनके पास अमृत का कलश लेकर आए और सुखदेव जी को देवता सब कहने लगे हे महर्षि, यह अमृत का कलश राजा परीक्षित को दे दीजिए जिससे वह अजर अमर हो जायेगा दीर्घायु हो जाएगा और बदले में कथा रूपी अमृत हम लोगों को दे दें। किंतु सुकदेव जी नहीं दिए ।

राजा परीक्षित को विधि-विधान पूर्वक भागवत शास्त्र, भागवत कथा का श्रवण कराया। पूर्व काल में श्रीमद्भागवत के श्रवण से ही राजा परीक्षित की मुक्ति देखकर ब्रह्मा जी को भी बड़ा आश्चर्य हुआ था उन्होंने सत्यलोक में तराजू बांधकर सब साधनों को तौला। अन्य सभी साधन तौल में हल्के पड़ गए ।अपने महत्त्व के कारण भागवत ही सबसे भारी रहा यह देखकर सभी ऋषियों को बड़ा विस्मय हुआ था। इसलिए सप्ताह विधि से श्रवण करने से समस्त मनोरथ पूर्ण होते हैं। मुख्य यजमान श्री कुलानंद मिश्र और उनकी धर्म पत्नी श्रीमती वीणा देवी पूर्ण भक्ति भाव से कथा श्रवण कर रहे हैं। कथा श्रवण करने के लिए भक्तों की भीड़ भी लगी रही।

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