58 वीं पुण्य स्मृति दिवस ‘आध्यात्मिक ज्ञान दिवस’ के रूप में मनाया गया !

abhishek kumar shingh

सिमराही: सुरेश कुमार सिंह

58 वीं पुण्य स्मृति दिवस ‘आध्यात्मिक ज्ञान दिवस’ के रूप में मनाया गया !

विचारों को पवित्र औऱ शुद्ध बनाने के लिए जीवन में सकारात्मक दिशा देता है राजयोग का अभ्यास
:-ब्रह्माकुमारी बबीता दिदी

 

बिहार/सुपौल: प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय सिमराही बाजार के तत्वाधान में स्थानीय ओम शांति केन्द्र पर ब्रह्माकुमारीज संस्थान की प्रथम मुख्य प्रशाशिका मातेश्वरी जगदंबा सरस्वती जी के 58 वी पुण्य स्मृति दिवस ‘आध्यात्मिक ज्ञान दिवस’ के रूप में मनाया गया।

कार्यक्रम का शुभारंभ स्थानीय सेवा केन्द्र प्रभारी राजयोगिनी ब्रह्माकुमारी बबीता दीदी, डा. पि .के. रंजन, व्यवसाई हीरा लाल साह, इंद्रदेव चौधरी, डा शशिभूषण चौधरी, बिनोद यादव, मंजू पंसारी, समाजसेवी अवध मेहता, साबित्री देवी , ब्रह्माकुमार किशोर भाई जी इत्यादि ओने संगठित रूप में मातेश्वरी जी के तस्वीर पर माल्यार्पण, फुलया अर्पण एवं दीप प्रज्वलन करके शुभारंभ किया।

अपने उदबोधन देते सेवा केंद्र प्रभारी राजयोगिनी ब्रह्माकुमारी बबिता दीदी जी ने मातेश्वरी जी की जीवन की विशेषता बताते हुए कहीं मम्मा गंभीरता की प्रतिमूर्ति थी , ईश्वरीय ज्ञान कि मस्तानी थी, बाबा के एक-एक शब्द बड़े प्यार से सुनती और सनाती थी, ड्रामा के पाठ में बहुत पक्का थी, हर आत्माओं के पाठ को साक्षी दृष्टा से देखती थी, मम्मा अपने लक्ष्य को सदा स्मृति में रख सूरत और सीरत से सर्व को देवी लक्षण दिखाई देती थी, सदा यही लक्ष्य रहता था मुझे गुणवान ,चरित्रवान औऱ मूल्यवान बनना है। रूहानियत ,स्वमान और बाप से सर्व संबंध का स्नेह यह उनके जीवन की मुख्य धारणा थी। शीतल स्वभाव, मीठे बोल, उच्चारण करने वाली मां सदा यही लक्ष्य रखा कि सबके दु:ख दूर करूं, किसी भी हालत में मम्मा क्रोध नहीं करती थी, आवेश में नहीं आती थी, मम्मा शांति की अवतार, प्रेम की मूर्ति थी। मम्मा एकांत में रहती थी रोज 2:00 बजे सवेरे उठकर बाबा की याद में एकांत में चली जाती थी। मम्मा हर घड़ी अंतिम घड़ी और दूसरा हुक्मी हुकुम चला रहा है। इसी स्मृति से हम भी सहज नष्टमोहा स्मृति स्वरूप बन जायेंगे। किन्ही झंझट में नहीं जाएंगे और अपनी बुद्धि को सब बातों से फ्री रख बाबा की आशाओं को पूर्ण कर सकेंगे यही उनकी जीवन की मुख्य धारणा रहा।

बबीता दिदी ने कहा राजयोग मेडिटेशन एक ऐसी विधि है जो व्यक्ति के लिए अमृत का काम करती है ।जीवन में हमें राजयोग के अभ्यास से स्वस्थ तन, स्वस्थ मन प्राप्त होता है। साथ ही इसमें स्वस्थ समाज का निर्माण भी होता है। उन्होंने सभी का योगासन, प्राणयाम एवं राजयोग मेडिटेशन का महत्व बताते हुए योगासन कराया।

उन्होंने कहा कि ब्रह्माकुमारीज संस्थान पिछले 8 दशक से भारत की पुरातन व सनातन राजयोग विद्या ,संस्कृति, सकारात्मक और स्वस्थ जीवन जीने की कला को भारत समेत विश्व भर में प्रचार प्रसार में जुड़ी है। उन्होंने कहा की योग की आवश्यकता तब होती जब मनुष्य आहार , व्यवहार विचार, आचार में अपनी चरम सीमा को पार कर अधर्म पर चल पड़ता है। तब परमात्मा आकर योग सिखाते हैं। गीता के अनुसार योग से देवी संपदा अर्थात स्वर्णिम दुनिया की स्थापना के साथ काम, क्रोध, लोभ, मोह ,अहंकार आदि विचारों का नाश होता है।

कार्यक्रम के प्रमुख अतिथि डा पि. के. रंजन जी ने अपने उदबोधन देते हुए कही जहां विज्ञान समाप्त हो जाता है वहां पर योग काम करता है । यह विज्ञान से कई गुणा आगे है। उन्होंने ओम शब्द के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा की यह एक शब्द प्रदर्शित करता है कि ईश्वर एक ही है और वह किसी धर्म के लिए अलग नहीं है। योग के बल पर धर्म और मजहब में मकड़जाल से छूट समाज एकजुट हो सकता है। उन्होंने ब्रह्माकुमारीज संस्था की प्रशंसा करते हुए कहा कि यह परमात्मा का सत्य परिचय पाकर हमारी जीवन ही बदल गया।

संस्थान के वरिष्ठ ब्रह्माकुमार किशोर भाई जी ने मंत्रोच्चारण कर योगाभ्यास कराया औऱ राजयोग कॉमेंट्री के माध्यम से सभी को शांति की अनुभूति कराया।

उक्त कार्यक्रम का संचालन ब्रह्माकुमार किशोर भाई जी ने किया। मौके पर डा पि. के. रंजन, मंजू पंसारी, विनोद यादव, व्यवसाई अशर्फी भगत, समाजसेवी डा. बीरेंद्र प्रसाद साह, कृष्ण कुमार, ब्रह्मदेब भाई , डॉ शशिभूषण चौधरी , सत्यनारायण भाई, इंद्रदेव भाई,वीरेंद्र भाई, किशोर भाई, बबीता दिदी, आस्था बहन, चांदनी बहन, शिव कुमार देवी, रामफल भाई, अवध मेहता, अभिषेक कुमार इत्यादि सैकड़ों श्रद्धालु मौजूद थे।

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