कोसी तबाही की गबाही विषयक परिचर्चा आयोजित !

abhishek kumar shingh

सुरेश कुमार सिंह की रिपोर्ट

कोसी तबाही की गबाही विषयक परिचर्चा आयोजित !

 

बिहार/सुपौल: पिछले दिनों में “कोसी-कुसहा तबाही की गबाही” विषयक परिचर्चा का आयोजन किया गया। इस अवसर पर मुख्य वक्ता जन अधिकार पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष परमेश्वरी सिंह यादव ने बताया कि उत्तर बिहार का बाढ़ से पुराना नाता है। पहले बाढ़ एक प्राकृतिक घटना थी, जो हमारे लिए वरदान की तरह थी। लेकिन आज हमने प्रकृति के साथ जो छेड़छाड़ किया है, उसके कारण बाढ़ विभिषिका बन गई है। उन्होंने कहा कि 18 अगस्त, 2008 को कुसहा बांध टूटने से जो बाढ़ आई थी, वह प्राकृतिक नहीं, वरन् मानवीय थीं। इसके लिए हमारी आधुनिक विकास नीति जिम्मेदार है। उन्होंने कहा कि दुनियाभर में बड़े-बड़े बांधों के अनुभव अच्छे नहीं हैं। बड़े बांध बनाकर नदियों की धारा को रोकना पूरी तरह अवैज्ञानिक है।‌ उन्होंने कहा कि बड़े बांधों के कारण नदियों में गाद जमा हो रहा है।‌ इसके कारण बाढ़ का खतरा बढ़ा है और बाढ़ क्षेत्र का विस्तार भी हुआ है।
उन्होंने कहा कि 1954 में कोसी प्रोजेक्ट शुरू किया गया था, जो आज भी पूरी नहीं हुई है।‌ लेकिन इस बीच लाखों लोगों का जीवन तबाह कर दिया है‌। कुसहा बांध के कारण कोसी क्षेत्र में बाढ़ ने बिकराल रूप धारण कर लिया है।

उन्होंने कहा कि पहले कोसी की सात अलग-अलग धाराएं थी। लेकिन कोसी बैराज के कारण सभी धाराओं और इसके अतिरिक्त 37 अन्य छोटी-छोटी नदियों का एक रिजर्व वायर बना दिया गया है। इससे खतरा बढ़ा है।
उन्होंने कहा कि कोसी इलाके की मिट्टी काफी उपजाऊ है। पहले दूसरे राज्यों के लोग यहां धान काटने आते थे। लेकिन आज स्थिति बदल गई है। आज हमारे लोग रोजगार के लिए दूसरे राज्यों में पलायन कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि कोसी में खेती-किसानी, कारिगरी एवं जल-प्रबंधन को लेकर एक समग्र योजना बनाकर कार्य करने की जरूरत है। इन सवालों के आधार पर समाज एकजुट करने और इन मुद्दों को केंद्र में रखकर जन- आंदोलन खड़ा करना आवश्यक है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे परमेश्वरी सिंह यादव ने कहा कि कोसी त्रासदी में हमारे सैकड़ों लोग मारे गए और धन-जन की अपार क्षति हुई। लेकिन आज तक हमने उस तबाही से कोई सबक नहीं लिया है।उन्होंने कहा कि कोसी में बाढ़ एवं अन्य सवालों को लेकर जनचेतना एवं जनजागरण की आवश्यकता है। इन सवालों को लेकर पदयात्रा शुरू की जाए और जगह-जगह संगोष्ठी हो।

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