निर्गुण ब्रह्म की भक्ति का दिन है अनंत चतुर्दशी : आचार्य
सुपौल/करजाईन: गौरीश मिश्रा
निर्गुण ब्रह्म की भक्ति का दिन है अनंत चतुर्दशी : आचार्य
बिहार/सुपौल : हिन्दू धर्म में आदिकाल से ही यह मान्यता प्रचलित है कि संसार को चलाने वाले प्रभु कण-कण में व्याप्त हैं। ईश्वर जगत में अनंत रूप में विद्यमान हैं। दुनिया के पालनहार प्रभु के अनंतता का बोध कराने वाला एक कल्याणकारी व्रत अनंत चतुर्दशी के रूप में मनाया जाता है। भाद्र शुक्लपक्ष की चतुर्दशी अनंत चतुर्दशी के नाम से संपूर्ण भारत में भक्तिभाव के साथ मनाया जाता है। इस बार यह तिथि 19 सितंबर यानि रविवार को है।
स्कंद पुराण, ब्रह्म पुराण, भविष्यादि पुराणों के अनुसार यह व्रत भाद्रपद शुक्लपक्ष की चतुर्दशी को किया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजन एवं कथा होती है। इसमें उदयव्यापिनी तिथि ग्रहण की जाती है। इस व्रत को इसलिए विशेष रूप से जाना जाता है कि यह अंत ना होने वाले सृष्टि के कर्ता निर्गुण ब्रह्म की भक्ति का दिन है।
अनंत चतुर्दशी के महात्म्य पर प्रकाश डालते हुए आचार्य पंडित धर्मेंद्रनाथ मिश्र ने बताया कि इस दिन भक्तगण अपने अलौकिक कार्यों से मन को हटा कर ईश्वर भक्ति में अनुरक्त हो जाते हैं। इस दिन वेद ग्रंथों का पाठ करके भक्ति की स्मृति का डोरा बांहों में बांधा जाता है। यह व्रत पुरुषों द्वारा किया जाता है।
ऐसे करें पूजन
इस दिन अष्टदल कमल के समान बने कलश में कुश से निर्मित अनंत की स्थापना करके इसके पास कुमकुम, केसर, हल्दी, रंगीन 14 गांठों वाला अनंत रखा जाता है। कुश के अनंतता की वंदना करके उसमें भगवान विष्णु का आहवान तथा ध्यान करके गंध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप तथा नैवेद्य से पूजन करें। इसके बाद कथा श्रवण करें। तत्पश्चात अनंत देव का पुनः ध्यान मंत्र पढ़कर अपनी दाहिनी भुजा पर बांधे। यह 14 गांठ वाला डोरा भगवान विष्णु को प्रसन्न करने वाला तथा अनंत लाभदायक माना गया है।
यह अनंत व्रत धन, पुत्रादि प्राप्ति के कामना के लिए भी किया जाता है। अनंत की 14 गांठें 14 लोकों की प्रतीक है। इसमें अनंत भगवान विद्यमान है। इस व्रत की कथा बंधु-बांधव सहित सुननी चाहिए।
अनंत पूजा का शुभ मुहूर्त
आचार्य धर्मेन्द्रनाथ मिश्र ने बताया कि रविवार को अनंत पूजा का शुभ समय सूर्योदय से 10:30 पूर्वाहन तक तत्पश्चात दोपहर 1:34 से शाम तक है। यदि प्रातः काल 10:30 तक में अनंत पूजा कर लें तो सभी मनोरथों की प्राप्ति होगी।
इन मंत्रों के साथ करें अनंत धारण
आचार्य ने बताया कि अनंत संसार महासमुद्रे मग्नं समभ्युद्धर वासुदेव। अनंतरूपे विनियोजयस्व अनंत रूपाय नमो नमस्ते॥ मंत्र के साथ अनंत को धारण करें। ध्यान रहे कि महिलाएं बाएं हाथ की बांह एवं पुरुष दाएं हाथ की बांह में अनंत धारण करें।