सर्वोदय नेत्री सरला बहन का निधन !

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सुपौल/करजाईन: गौरीश मिश्रा

सर्वोदय नेत्री सरला बहन का निधन !

बिहार/सुपौल: दबे, कुचले लोगों एवं बेसहारों के के लिए जीवन पर्यंत लड़ने वाली एवं गोरक्षा के लिए आंदोलन करने वाली यमुना बेन पुरस्कार से सम्मानित राघोपुर प्रखंड के मोतीपुर निवासी सर्वोदय नेत्री सरला बहन (85) के निधन से क्षेत्र में शोक की लहर हैं। मुखाग्नि छोटे पुत्र कुमार सत्यमूर्ति ने दी। उनके निधन पर पूर्व विधायक उदय प्रकाश गोईत, सीनियर सिटीजन एसोसिएशन के जिलाध्यक्ष सुरेश चंद्र मिश्र, रामलखन मेहता, आचार्य रामविलास मेहता, पंडित शचीन्द्रनाथ मिश्र, शशि प्रसाद सिंह, जिला किसान संघ के सचिव सत्यनारायण सहनोगिया, प्रेम प्रकाश, प्रकाश कुमार, पैक्स अध्यक्ष राजकुमार सिंह, शैलेश सिंह, पूर्व मुखिया प्रवीण कुमार मिश्र, तारानंद यादव, आचार्य धर्मेन्द्रनाथ मिश्र, धीरेंद्र मिश्र, अरुण मिश्र सहित क्षेत्र के जनप्रतिनिधि एवं लोगों ने गहरी संवेदना व्यक्त करते हुए ईश्वर से उनकी आत्मा की शांति की प्रार्थना की है।

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सुपौल जिला के रतनपुर गांव के योगेन्द्र मिश्र की सबसे बड़ी संतान सरला बहन की शादी राघोपुर प्रखंड के मोतीपुर के सर्वोदय नेता शिवानंद भाई के साथ हुआ था। उनकी पहचान राज्य ही नहीं वरण देश में थी। अदम्य साहस के बल पर हमेशा किसी भी आंदोलन में अग्रणीय भूमिका निभाई। 1960 में विनोवा भावे के ग्रामदानी, भूदान आंदोलन से प्रेरित होकर समाजसेवा में जुट गई। जेपी, धीरेंद्र मजूमदार व आचार्य राममूर्ति के साथ अपने पति व सर्वोदय नेता शिवानंद भाई की सानिध्य में देश व राज्य के कई आंदोलनों में सक्रिय भूमिका निभाई।

नक्सल हिंसा व उग्रवाद प्रभावित क्षेत्र एकवारी में रणवीर सेना व भाकपा (माओवादी) से संवाद कर शांति स्थापित कर बंद पड़ी गरीब किसानों की खेतीबारी को शुरू कराया। सांप्रादयिक हिंसा के दौरान भागलपुर, मुंगेर (बंगलवा) में दौरा कर शांति स्थापित करने में अहम भूमिका निभाई। सीतामढ़ी में शांति-सद्भाव स्थापित करने में भी बढ़चढ़ कर भूमिका निभाई। 1989 में मधेपुरा में जातीय हिंसा में लोगों के बीच शांति व सद्भाव स्थापित किया। 1994 में आई प्राकृतिक आपदा भूकंप के दौरान उत्तर बिहार में राहत और पुर्नवास कार्य में भाग लिया। 2008 के कोसी प्रलय के दौरान पुर्नवास के लिए पदयात्रा किया। गोरक्षा के लिए चरणबद्ध आंदोलन का बिगुल फूंका। गोरक्षा के प्रति अदम्य साहस का परिचय देने के कारण वर्ष 2011 में बहन को यमुना बेन पुरस्कार से सम्मानित किया गया। जीवन के अंतिम पड़ाव के दौरान भी असहायों को सहायता के लिए खड़ी रही।

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