भारत की संस्कृति मानवीय मूल्यों को उजागर करने व आध्यात्मिक रहस्य को प्रकाशित करने वाला त्यौहार है रक्षाबंधन !

abhishek kumar shingh

सिमराही: सुरेश कुमार सिंह

भारत की संस्कृति मानवीय मूल्यों को उजागर करने व आध्यात्मिक रहस्य को प्रकाशित करने वाला त्यौहार है रक्षाबंधन !

सकारात्मक चिंतन करने से मनुष्य खुशहाल जीवन जी सकता है:- ब्रह्माकुमारी बबीता दीदी

बिहार/सुपौल: प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय सिमराही बाजार के तत्वाधान में ओम शांति केन्द्र और शसस्त्र सीमा बल( एस .एस.बी) के विभिन्न कैम्प सिमरी, नरपतपटी, तेरहीबाजार, ढाढा, पिपराही, साहेबान, रानीगंज, कटेया इत्यादि कैंपों में अधिकारी व जवानों को उनके कलाइयों पर राखी बांधकर उनके दीर्घायू होने की कामना करने के साथ नैतिक शिक्षा बिषय पर प्रशिक्षण देकर सभी के कलाई में राखी बांध भव्य रूप में अलौकिक रक्षाबंधन का कार्यक्रम किया संपन्न ।

रक्षाबंधन के आध्यात्मिक रहस्य बताते हुए सेवा केंद्र प्रभारी राजयोगिनी बबीता दीदी ने कहीं कि रक्षाबंधन सभी पर्वों में एक अनोखा पर्व ही नहीं बल्कि भारत की संस्कृति तथा मानवीय मूल्यों को उजागर करने वाला अनेक आध्यात्मिक रहस्य को प्रकाशित करने वाला और भाई बहन के वैश्विक रिश्ते की स्मृति दिलाने वाला एक परमात्मा का उपहार है। इस पर्व पर रक्षा सूत्र बांधने से पूर्व बहन अपने भाई के मस्तक पर चंदन का तिलक लगाती है। जो शुद्ध ,शीतल और सुगंधित जीवन जीने की प्रेरणा देता है। तिलक दाएं हाथ से किया जाता है। तथा राखी दाएं हाथ पर बांधी जाती है। यह विधि हमें यह प्रेरणा देती है, कि हम सदा राइट अर्थात सकारात्मक चिंतन करते हुए राइट अर्थात श्रेष्ठ कर्म ही करें। जिससे आत्मा कनिष्ठ परिणामों से दुखी व शांत होने से सुरक्षित रहेगी। मिठाई खिलाने के पीछे भी मन को और संबंधों को मीठा बनाने का राज भरा है।
उन्होंने कहा कलाई पर बाधने वाले कच्चे धागे में विश्व के नवनिर्माण के 5 सूत्र समाए हुए हैं.. स्नेह सूत्र, रक्षा सूत्र, ईश्वरीय सूत्र, परिवर्तन सूत्र, पवित्रता सूत्र।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि सब इस्पेक्टर भूपेन्द्र प्रताप सिंह ने अपने
उदबोधन में कहा की ज्ञान की कमी के कारण वर्तमान समय में मानव के अंदर काम, क्रोध, लोभ, मोह ,अहंकार, ईर्ष्या, घृणा ,नफरत आदि राक्षसी प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है। जिसके कारण समाज में दिन-प्रतिदिन अपराध बढ़ते ही जा रहे हैं। उन्होंने बताया अगर हमने अपने भारतीय पुरानी सभ्यता, संस्कार, परंपराएं, पूर्व जनों की संस्कृति, सत्संग के माध्यम से फैलाई नहीं तो इस समाज में चलना ,रहना, बैठना ,उठना जीना बड़ा कठिन महसूस होगा ।उन्होंने जीवन मे सत्संग का महत्व बताते हुए कहा कि सत्संग के द्वारा प्राप्त ज्ञान ही हमारी असली संपत्ति है। सत्संग के माध्यम से प्राप्त शक्तियां, सद्गुण, विवेक द्वारा हम अपने कर्मों में सुधार ला सकते हैं। उन्होंने बताया कि सत्संग द्वारा प्राप्त शक्तियां, सद्गुण की कमाई को ना तो चोर लूटता है, ना ही आग जलाती है ,नहीं पानी डूबाता है ।यह तो हमारे साथ जाने वाली असली संपत्ति है।इसका प्राप्त करने से ही जन्म जन्मांतर हम महान बन सकते हैं। ऐसे कमाई को प्राप्त करने के लिए भी हमें अपना समय देना चाहिए। सत्संग से प्राप्त ज्ञान द्वारा ही हम अपने जीवन को सकारात्मक बना कर तनावमुक्त जी सकते हैं।


डॉ बीरेंद्र प्रसाद साह ने अपने उदबोधन देते कहा कि वर्तमान की इस तनावपूर्ण युग में स्वयं निराकार परमपिता परमात्मा इस धरती पर अवतरित हो चुके हैं, सहज ज्ञान और राजयोग के अभ्यास द्वारा और सकारात्मक विचार की कला द्वारा तनाव मुक्ति का जीवन सिखा रहे हैं उन्होंने बताया कि राजयोग के अभ्यास द्वारा हम अपने इंद्रियों को काबू में ला सकते हैं। मन के सकारात्मक विचार द्वारा अपने मनोबल को आत्मबल को बढ़ा सकते हैं।

अन्त में ब्रह्माकुमारीज संस्थान सिमराही के मुख्य संचालिका राजयोगिनी ब्रह्माकुमारी बबिता दीदी ने राजयोग के विधि बताते हुए कहा कि स्वयं को आत्म का निश्चय कर चांद ,तारागन से पार रहने वाले परम ज्योति परमात्मा को मन बुद्धि से याद करना, उनके गुणों का गुणगान एवं उपकारों में खो जाना ही राजयोग है। उन्होंने बताया कि जब तक हम परमात्मा के शरण में नहीं जाते हैं। तब तक विकारों से छुटकारा मिलना मुश्किल है। उन्होंने बताया है कि मनोविकार ही मानव के जन्मजात शत्रु है।

उक्त कार्यक्रम का संचालन ब्रह्माकुमार किशोर भाई ने किया। मौके पर सत्यनारायण भाई, इन्द्र देव भाई, ब्रह्मदेव भाई, डॉ बीरेंद्र प्रसाद, सतीश कुमार ,समाजसेवी परमेश्वरी सिंह यादव, अनिल महतो ,ब्रह्माकुमारी आस्था बहन ,ब्रह्माकुमारी चांदनी बहन, रेणु देवी, साबित्री देवी इत्यादि सैकड़ों श्रद्धालु मौजूद थे।

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